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मैं अटल हूं रिव्यू: फिल्म पर हावी हुई अटल बिहारी के किरदार में आए पंकज त्रिपाठी की परफॉर्मेंस

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पंकज त्रिपाठी की फिल्म में अटल हूं शुक्रवार को रिलीज हो चुकी है। फिल्म के पोस्टर और ट्रेलर जब रिलीज हुए थे तो दर्शकों ने दोनों को काफी पसंद किया था। अब इस फिल्म को देखने के लिए दर्शक काफी एक्साइटेड नजर आ रहे हैं। फिल्म के आसपास कोई बड़ी फिल्म रिलीज नहीं हुई है तो ऑटोमेटेकली दर्शकों का ध्यान इस फिल्म की तरफ भी है। फिल्म एक बहुत ही बेहतरीन और महत्वपूर्ण दृश्य से शुरू होती है जिसमें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई अपने मंत्रियों के साथ पाकिस्तान के युद्ध पर चर्चा करते हुए देखे जा सकते हैं। 

फिल्म में पंकज त्रिपाठी ने अटल बिहारी वाजपेई की भूमिका निभाई है। यह फिल्म अटल बिहारी वाजपेई की बायोपिक है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को आजातशत्रु कहा जाता था। यानी वाजपेई जी उन आखिरी नेताओं में से एक थे जो सबके प्रिय रहे और उनका कोई भी शत्रु नहीं था। 

यह फिल्म अटल बिहारी वाजपेई के बचपन से लेकर उनके प्रधानमंत्री बनने , ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौर से लेकर इतिहास के उन पन्नों को पलटने की कोशिश करती है जो अटल को एक बड़ा और बेहतरीन नेता बनाने में अपना नाम रखते हैं। 

फिल्म में अटल बिहारी वाजपेई जी के जीवन को बेहद बारीकी से दिखाया गया है। इस फिल्म में 1953 में कश्मीर अटैक 1962 में हुआ चीन वर 1963 में हुई पाकिस्तान से लड़ाई और 1975 में लगी इमरजेंसी को भी बखूबी दिखाया गया है।

फिल्म में कुछ घटनाओं के दिखाए जाने से फिल्म की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ती दिखाई देती है। फिल्म के डायरेक्टर रवि जाधव और ऋषि वर्मा का लिखा हुआ स्क्रीनप्ले काफी कमजोर दिखाई पड़ता है , जिसकी वजह से मैं अटल हूं काफी मायनों में चुक जाती है। फिल्म की कहानी बेहद अच्छी है लेकिन फिल्म को कमजोर तरीके से लिखा गया है साथ ही साथ फिल्म का डायरेक्शन भी काफी कमजोर है। 

फिल्म में पंकज त्रिपाठी ने जबरदस्त एक्टिंग की है। उन्होंने अपनी फिल्म मैं अटल हूं को पूरी तरह से खुद पर हावी कर लिया था और इसी तरह वह पूरी फिल्म और पटकथा पर हावी हो गए। पंकज त्रिपाठी के अलावा फिल्म में कई साइड कैरेक्टर्स ने अपने-अपने हिस्से को बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया है। 

फ़िल्म में पीयूष मिश्रा ने अटल बिहारी वाजपेई के पिता कृष्ण बिहारी के किरदार को भी निभाया है। भले ही स्क्रीन में उनकी टाइमिंग बहुत कम रही है लेकिन उन्होंने अपनी परफॉर्मेंस से सभी दर्शकों के दिलों को जीता है। पिता पुत्र के भावुक दृश्य फिल्म में सभी को काफी पसंद आए हैं। 

फिल्म कई इंपोर्टेंट चीजों को दिखाया गया है और इन्हीं इंर्पोटेंट इवेंट्स को दिखाने की वजह से फिल्म थोड़ी स्लो हो जाती है दूसरे हाफ में अटल बिहारी वाजपेई के करियर के उसे दूर को दिखाया जाता है जहां पर बड़े काम कर रहे थे जैसे की फिल्म में पोखरण का टेस्ट दिल्ली से पाकिस्तान बस सेवा और कारगिल वॉर को भी दिखाया गया है लेकिन इन सब को डायरेक्टर नेम दो से ढाई घंटे के बीच में ही दिखाने की कोशिश की है और फिल्म में यह सारे इवेंट से एक मोंटेज की तरह दिखाई देते हैं। 

फिल्म का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट थे पंकज त्रिपाठी और उनकी एक्टिंग ही सारा क्रेडिट ले जाती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह फिल्म अटल बिहारी वाजपेई की जर्नी को दिखाने की एक अच्छी कोशिश है। फिल्म में बहुत सारे इवेंट दिखाएं जाने की वजह से भी ऐसा लगता है कि जैसे यह फिल्म बायोपिक फिल्म की जगह डॉक्यूमेंट्री हो।

लेकिन इन सभी बातों को दर किनारा करके मैं अटल हूं जैसी फिल्में जरूर देखी जाने चाहिए। फिल्म का जैसे ही सेकंड हाफ शुरू होता है वैसे ही फिल्म में एक नई एनर्जी का प्रवेश हो जाता है। फिल्म में इसके बाद जो दमदार डायलॉग दिखाए जाते हैं और पंकज त्रिपाठी जो डायलॉग डिलीवरी करते हैं वह देखते ही बनती है। दर्शकों का मानना है कि अटल जी की यह फिल्म केवल एक फिल्म नहीं है बल्कि उन्होंने अटल जी को फिल्म के सहारे जीने की कोशिश की है।

इस फिल्म को आज तक ने 2.5 की रेटिंग दी है। इंडिया टीवी ने से पांच में से 3.5 की रेटिंग दी है वही टाइम्स आफ इंडिया ने भी ऐसे पांच में से 3.25 की रेटिंग दी है। इस फिल्म को आईएमडीबी पर 9.4 की बेहतरीन रेटिंग प्राप्त है।

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