जब भी कोई सवाल उठाने वाली फिल्म रिलीज होती है तो अक्सर बॉक्स ऑफिस पर बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाती है क्योंकि या तो इस तरह की फिल्में कम बजट की होती हैं या इनमें स्टार कास्ट बेहद छोटी होती है लेकिन उनके एक्टिंग का दर्जा बेहद ऊंचा होता है। इस तरह की फिल्मों को लोग कम ही नोटिस कर पाते हैं। गुठली लड्डू भी एक ऐसी ही फिल्म है जिसमें संजय मिश्रा जैसे दिग्गज कलाकार मुख्य भूमिका में दिखाई दिए हैं लेकिन फिर भी इस फिल्म की ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है।
फ़िल्म का प्लॉट
यह कहानी है गुठली और लड्डू नाम के दो बच्चों की जो एक छोटी जाति के हैं। उनका परिवार साफ-सफाई करने का काम करता है लेकिन परिवारों के बच्चे पढ़ाई करना चाहते हैं। गुठली नाम का यह बच्चा स्कूल की खिड़की से वह सब कुछ समझ लेता है जो क्लास में बैठे बच्चे नहीं समझ पाते हैं लेकिन क्योंकि यह बच्चा एक छोटी जाति से है इसलिए उसे स्कूल में एडमिशन नहीं मिलता है। स्कूल के प्रिंसिपल संजय मिश्रा पहले उसे नापसंद करते थे लेकिन फिर चाहते हैं कि उसे एडमिशन मिल जाए। गुठली के पिता भी कोशिश करते हैं कि उनका बेटा पढ़ लिख ले लेकिन क्या गुठली को सामाजिक जात-पात से उठकर स्कूल में एडमिशन मिल पाएगा? यह जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी चाहिए। यह फिल्म और इस फिल्म की कहानी कहीं न कहीं हमें सोचने पर और सवाल उठाने पर मजबूर करती है।
फ़िल्म में एक्टिंग
यदि फिल्म में अदाकारी की बात की जाए तो संजय मिश्रा की अदाकारी को रेटिंग देने की हैसियत मेरे पास नहीं है। वे अपने एक्टिंग करियर में एक ऐसे मुकाम पर हैं जहां उन्हें और उनकी एक्टिंग को रिव्यू नहीं किया जा सकता है। वह जहां भी काम करते हैं जिस भी रोल को निभाते हैं उसे एकदम अपना बना लेते हैं। इस फिल्म में उन्होंने स्कूल के हेड मास्टर का किरदार निभाया है और वह एकदम हेडमास्टर ही लगते हैं। इसके अलावा फिल्म में बाल कलाकारों ने भी शानदार काम किया है संजय मिश्रा जैसे दिग्गज कलाकार के सामने यह बाल एक्टर काम कर गए यह भी अपने आप में एक बड़ी बात है। फिल्म के बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है।
फ़िल्म की रेटिंग और रिव्यु
फिल्म में एक बेहतरीन डायलॉग आता है। इस डायलॉग को स्कूल हेडमास्टर बने संजय मिश्रा ने बेहद बेहतरीन तरीके से निभाया है। वह फिल्म में कहते हैं ” पूजा पर ध्यान ना दें ,सरस्वती पूजा पर ध्यान दें लक्ष्मी खुद ही चल कर घर आ जाएगी। लेकिन क्या लक्ष्मी और पढ़ाई सिर्फ बड़ी जाति वालों का हक होता है। ” यह फिल्म इसी तरह के सवाल उठाती हैं इसके अलावा भी फिल्म में कई ऐसे डायलॉग आते हैं जो आपको झकझोर कर रख देते हैं। आज के मॉर्डन ज़माने और बड़े शहरों के स्कूल में यह सारी चीज शायद ना होती हों लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं यह होता है और हुआ होगा। इन्हीं सब सवालों को उठाते हुए यह फिल्म आगे बढ़ती है एक के बाद एक फिल्म में कई ऐसे बेहतरीन और विचलित कर देने वाले सीन आते हैं जो मानस पटल पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
इस फिल्म को बेहतरीन रेटिंग मिली है। टाइम्स आफ इंडिया ने इसे 5 में से तीन की रेटिंग दी है , वहीं एबीपी न्यूज ने इसे पांच में से 3.5 की रेटिंग दी है और टाइम्स आफ इंडिया ने इसे 5 में से 3.3 की रेटिंग दी है। आईएमडीबी ने से 10 में से 8.3 की रेटिंग दी है।
इस फिल्म में बुंदेलखंड की कहानी को दिखाया गया है और बुंदेलखंड से बिलॉन्ग करने के नाते मैं इस बात को जानती हूं कि यहां आज भी छोटे शहरों और गांव में भारी जात पात होता है।
यह फिल्म एक बेहतरीन फिल्म है इस फिल्म में चकाचौंध और ग्लैमर नहीं है , तड़क-भड़क गाने नहीं है लेकिन अगर हम अच्छे कंटेंट वाले कोई फिल्म देखना चाहते हैं तो हमें यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। लेकिन अक्सर अच्छे कंटेंट वाली फिल्में हिट नहीं हो पाती हैं बॉक्स ऑफिस पर यह करोड़ कमाए ना कमाए लेकिन लोगों के दिलों में जरूरत रहेगी। तो अगर आप एक अच्छे कंटेंट वाली फिल्म देखने का शौक रखते हैं तो आपको यह फिल्म ज़रूर ज़रूर देखनी चाहिए।